हनुमान


हनुमान सिद्ध धर्म के सबसे ज्वलंत व्यक्तित्वों में से एक माने जाते हैं। वज्र योग व योग के अन्य रूपों में पारंगत होने के कारण इन्हें ऐसा देवता माना जाता है जो स्वयं एक महायोगी हैं यह एक महान तांत्रिक देवता भी हैं क्योंकि यह एकादश रुद्रों में से एक माने जाते हैं। यह स्वयं शिव होने के कारण शिव की विद्या के सभी रूपों के स्वामी हैं परन्तु समाज ने इन्हें भक्त के रूप में लोकप्रिय किया है जिनके हाथ में वाद्य यंत्र है व जो राम के विजय के गीत गा रहे होते हैं। समाज इनको वानर देवता के रूप में चित्रित करता है जबकि सिद्ध धर्म इनको अधिक ऋषि-मुनि समतुल्य मानव रूप में चित्रित करता है। इन्होंने कपि कुल में जन्म लिया परन्तु स्वयं को महासिद्ध की अवस्था में परिवर्तित कर दिया। सिद्ध धर्म इनको वानर देवता या भक्त की तुलना में महासिद्ध के रूप में अधिक मानता है।

हनुमानजी का संदर्भ हमेशा भगवान राम से जोड़ा जाता है क्योंकि उन्हें भगवान राम का महानतम भक्त माना जाता है। भारत में अनके पन्थ एवं परम्पराएं इनको भक्ति का प्रतीक मानती हैं। सिद्ध धर्म के अनुसार इन्हें महाचिरंजिवी माना जाता है क्योंकि इन्होंने मृत्यु पर योग के माध्यम से विजय प्राप्त की है एवं यह अन्य लोकों में गमन करने की क्षमता रखते हैं ।

सिद्ध धर्म की किवदंती के अनुसार इनका जीवन कलियुग के अंत तक रहेगा जहाँ वह भगवान कल्कि से भेंट करेंगे एवं तत्पश्चात इहलोक का त्याग करेंगे। सिद्ध धर्म के अनुसार, यह इस लोक में कलिकाल में समाज को अन्धकार से ज्योति की ओर मार्गदर्शित करने हेतु उपस्थित हैं।

शब्द साधन व शब्दावली

हनुमान (हनु + मान) शब्द का व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थ हनु अर्थात ठुड्डी एवं मान अर्थात टूटी हुई से है। इन्हें हनुमंत नाम इसलिए मिला क्योंकि इनकी ठुड्डी इन्द्र देव के वज्र प्रहार के कारण गिरने से टूट गयी थी। इनके नाम की अनेक व्याख्याएं की गई हैं किन्तु सभी के अर्थ एक से नहीं हैं लेकिन सबसे अविवादित सत्य यह है कि इनका प्राथमिक नाम मारुति था जिसका अर्थ मारुत देव के पुत्र या वायु पुत्र है।

सिद्ध धर्म के अनुसार इनको हनुमान कहे जाने का कारण ‘हनु’ अर्थात हन अथवा विजय करना व ‘मान’ का अर्थ है अहम् भाव, इस प्रकार अहम भाव पर विजय प्राप्त करने से हनुमान जी को यह नाम मिलाऐसा माना जाता है की इन्होंने भक्ति के द्वारा अपने अहम भाव पर ऐसी विजय प्राप्त की है की महा वज्रांगबली एवं महाशक्तिशाली देवता होते हुए भी यह मान अर्थात अहम भाव से बिलकुल रहित हैं। यह महाशक्तिशाली देव मान/अहम के अभाव के प्रतीक हैं।

सिद्ध धर्म के अनुसार इन्हें जन्म देने वाले माता पिता केसरी व अंजनी हैं। इनकी माता शापित अप्सरा पुन्जिका मानी जाती हैं। वायु देव, जो मारुत नाम से भी विख्यात हैं इनके देव पिता माने जाते हैं । इनको वज्रांगबली के नाम से भी जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ (वज्र + अंग + बली ) से है। जहाँ वज्र का अर्थ अत्यंत दृढ़, अंग का अर्थ शरीर के भाग एवं बली अर्थ शक्तिशाली से है। तीनों शब्दों के संयोग का तात्पर्य है, ऐसे देवता जिनके शरीर के अंग वज्र तुल्य दृढ़ और जो बलशाली जनों में सर्वाधिक बलशाली हैं।

यह न्जनेय के नाम से भी जाने जाते हैं जिसका अर्थ अंजनी पुत्र है।

हनुमान जी के विभिन्न स्वरूप

तांत्रिक हनुमान

सिद्ध धर्म के अनुसार हनुमान महासिद्ध माने जाते हैं क्योंकि वह एकादश रुद्रों में से एक हैं। वह स्वयं रूद्र हैं, उन्होंने भगवान शिव के सभी उपलब्ध तंत्रों को सिद्ध किया है। गुप्त धर्म होने के कारण सिद्ध धर्म में हनुमान जी का पूजन गुप्त और तांत्रिक विधि से होता रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में भक्ति क्रांति के गतिमान होने पर तांत्रिक हनुमान की पूजा घटनी प्रारंभ हुई व उनके वानर रूप का समाज में अधिक प्रचलन हुआ। उनमें से तांत्रिक तत्व हटाये गए और उनका रूपांतरण भक्ति के प्रतीक देवता के रूप में हुआ।

सिद्ध धर्म के उपाख्यान के आधार पर तांत्रिक हनुमान सभी दुष्ट आत्माओं और जीवन की बाधाओं को हटाने वाले देवता हैं। इनकी पूजा यंत्र की सहायता से की जाती है,  साथ ही महाभारत के काल में अर्जुन के रथ की रक्षा हेतु इनका प्रतीकात्मक निरूपण ध्वज पर किया गया था। हनुमान की शक्ति का आह्वाहन ध्वज में किया गया एवं उसे रथ के ऊपर स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना रथ व अर्जुन की रक्षा हेतु की गई थी। इनका ध्वज धर्म का प्रतीक है। इसे धर्म-ध्वज भी कहा जाता है।

सिद्ध धर्मानुसार हनुमान जी को तंत्रेश्वर भी कहा जाता है क्योंकि इन्हें भगवान शिव के द्वारा सभी तंत्रों की शिक्षा कैलाश पर्वत पर प्रदान की गई थी

वज्र योगी हनुमान

सिद्ध धर्म की मान्यता है कि हनुमान जी महायोगी भी हैं। इन्होंने अपने शारीर की पूर्णता हेतु व योग की सिद्धि हेतु योग के अनेक स्वरुप सिद्ध किये हैं। सिद्ध धर्म के अनुसार इनको वज्रांगबली इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्होंने वज्र योग सिद्ध किया व अपनी देह को वज्र जो की इंद्र का अस्त्र है, के सामान कठोर बनाया। इन्होंने ब्रह्मचर्य सिद्धि हेतु वज्रोली मुद्रा भी सिद्ध की है।

सिद्ध धर्म की किवदंतियों के आधार पर दो कथाएँ हनुमानजी के वज्र योगी होने की व्याख्या करती हैं एवं दोनों सूर्य भगवान से सम्बद्ध हैं । प्रथम कथानुसार, बाल्यावस्था में एक दिन हनुमान जी अत्याधिक भूख के कारण कुछ बड़ा खाने के इच्छुक हुए। तब उन्होंने आकाश में सूरज को उंचाई पर चमकते देखा। कौतूहलवश, वह आकाश की ओर उसे निगलने हेतु बढ़ चले। इंद्र ने जब यह घटना देखी तो हनुमान को रोकने के लिए उन्होंने अपनी प्रत्येक शक्ति का प्रयोग किया लेकिन हनुमान के सामने वे सभी तुच्छ साबित हुईं। तब इंद्र ने उन पर अपने अंतिम अस्त्र वज्र का प्रयोग किया, महर्षि दधीचि की देह से निर्मित वज्र जब हनुमान को लगा तो वह धरा पर आ गिरे और अचेत हो गए

इससे उनके देव पिता मरुत अर्थात वायुदेव अत्यधिक क्रोधित हुए एवं उन्होंने समस्त वायु प्रवाह को बहने से रोक दिया। इस से समस्त धरा के निवासियों का श्वास रुक गया एवं धीरे धीरे जीवित प्राणी मरने लगे। यह देखकर प्रजापति सहित सभी देव, वायुदेव से अपने इस संकल्प को वापस लेने की प्रार्थना करने लगे। जब वायुदेव ने अपना संकल्प वापस लिया तब सभी देवताओं ने हनुमान जी को विभिन्न वर प्रदान किये जिनमें एक वर यह भी था कि वह वज्र से भी नष्ट नहीं होंगे व भविष्य में इनकी देह इंद्र के वज्र के प्रहार को भी सहन कर पाएगी, इस वर के कारण इनका नाम वज्रांगबली हुआ

द्वितीय कथा सिद्ध धर्म में अधिक लोकप्रिय है। इसके अनुसार, जब हनुमान जी ने सूर्य भगवान को ग्रसना चाहा तब उन्होंने सूर्य देव की ओर प्रयाण किया। वह सूर्य देव के ताप व अग्नि को लाँघ गये। जब वह सूर्य देव के निकट पहुँच गए तो सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उनसे उनका परिचय पूछा। तब हनुमान जी ने अपना परिचय सूर्य देव को प्रदान किया, इस पर सूर्यदेव प्रसन्न हुए तथा उन्होंने हनुमान जी से वर मांगने को कहा। बुद्धिमत्ता के रम प्रतीक हनुमान जी ने सूर्यदेव से ज्ञान प्रदान करने की इच्छा प्रगट की। प्रभु सूर्य देव तब उनके गुरु बने और उन्होंने अपना सारा ज्ञान हनुमानजी को प्रदान किया

हनुमान जी को सूर्यदेव द्वारा प्रदत्त किए गए ज्ञान में से एक वज्रयोग का ज्ञान भी था। वज्र योग एक विशेष प्रकार का योग है जो मानव के शरीर, मन व आत्मा की पूर्णता हेतु वज्रनाडी का प्रयोग करता है। इस योग की सिद्धि भी वज्र नाड़ी से होती है। वज्र नाड़ी, सूर्य नाड़ी की उपनाड़ी मानी जाती है। सूर्यदेव हनुमान जी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने हनुमान जी को वज्र योग का प्रशिक्षण दिया जिससे वह अपने भीतर के गुरु तत्व एवं वज्र नाड़ी को सिद्ध कर सकें। जब हनुमान जी ने वज्र नाड़ी सिद्ध की और उनका शरीर वज्र तुल्य हो गया तब उनका नाम वज्रांगबली हुआ ।

लोकमानस में यह तथ्य अल्पविदित है की हनुमान जी को उनका वज्रांगबली नाम, वज्र योग से मिला है। समाज ने हनुमानजी का चित्रण उनकी वास्तिविक क्षमताओं और वास्तविक चरित्र से अत्यधिक भिन्न किया है ।

भक्ति योगी हनुमान

जनमानस में भक्ति निरूपित करने वाले हनुमान का रूप सर्वाधिक लोकप्रिय है। वह वाद्ययंत्र पकड़े व निरंतर राम नाम का जप करते हुए चित्रित किए जाते हैं। यह चित्रित रूप भक्ति आन्दोलन से अत्यधिक प्रेरित है। साथ ही लोग हनुमान जी का चित्रण अपनी समझ के अनुसार करते हैं नाकि वस्तुनिष्ठ सत्य के अनुसार।

सिद्ध धर्म का मत समाज व विशेष रूप से भक्ति आन्दोलन से प्रेरित साहित्य से भिन्न है व साथ ही हनुमान जी के चित्रण से भी। सिद्ध धर्म के अनुसार हनुमान जी की भक्ति भौतिक न होकर ध्यात्मिक है। वह केवल भौतिक रघुराम जी के भक्त नहीं थे और ना ही उन्होंने भौतिक आधार पर भक्ति की। जब भक्ति की बात आती है तो वह अधिक ध्यात्मिक व ध्यात्म के उच्चतम स्तरों से सम्बद्ध थे। वह राम के भक्त थे और राम परम श्रेष्ठ प्रभु हैं जो प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं। श्री रघुनाथ एक अवतार थे क्योंकि उन्होंने ने अपने अंतःकरण में ईश्वरता उपजाई। यदि हम भौतिक मूर्तिमान (व्यक्तित्व रूपी) ईश्वर से तुलना करें तो हनुमान जी अधिक ध्यात्मिक ईश्वर परायण थे। यदि वह व्यक्ति रूपी ईश्वर के भक्त होते तो श्री रघुनाथ जी की देह की मृत्यु से हनुमान जी की भक्ति का अंत हो जाता, पर भक्ति भाव में स्थित होने के कारण, यह माना जाता है के वह इस विश्व में उपस्थित होकर महाभगवान कल्कि की प्रतीक्षा में र हैं। रघुनाथ राम की भांति कल्कि भी अपने अन्दर ईश्वरत्व विकसित करने में समर्थ होंगे और इसी ईश्वरत्व का दर्शन करने का हनुमान जी इस तमोमय कलियुग में प्रतीक्षा कर रहे हैं।

हनुमान जी की दूसरी व्याख्या प्रमाणिक भक्ति योग की प्रमाणिक अनुभूति से समझी जा सकती है। सिद्ध धर्म का विश्वास है कि उन्होंने भक्ति की दो प्रणालियों सगुण भक्ति एवं निर्गुण भक्ति की सिद्धि प्राप्त की। उन्होंने प्रभु रघुनाथ राम जी की पहले सगुण भक्ति की और उनके इहलोक से गमन के पश्चात ईश्वर की निर्गुण भक्ति की

हनुमान जी की सगुण भक्ति वह भक्ति का रूप है जिसकी सर्वाधिक त्रुटिपूर्ण व्याख्या की गई है। सिद्ध धर्म की सगुण भक्ति बहुत सरल किंतु सर्वाधिक परिष्कृत विचार है। सिद्ध धर्म की मान्यता है कि जब ईश्वर मनुष्य देह में अवतरित होता है तो देह भी भौतिक विश्व के नियमों से बंधी होती है, वह अवतार भी सुख-दुःख, उष्णता- शीतलता के अधीन साधारण मनुष्य की भांति होता है किन्तु उसका मुख्य तत्व ईश्वर का तत्व ही रहता है। इसलिए अवतार ईश्वरत्व से युक्त एक साधारण मनुष्य ही है। कोई भी अवतार एवं साधारण मनुष्य के बीच का अंतर नहीं स्पष्ट कर सकता क्योंकि अवतार की धारणा भौतिक की तुलना में आध्यात्मिक अधिक है। अवतार की अवधारणा इस जगत की सूक्ष्म आध्यात्मिक समझ पर आधारित है। यदि अवतार भौतिक होते तो अवतारों का परिमाण व दिष्ट, शरीर में हो रहे लगातार परिवर्तन के अनुसार ही घटता-बढ़ता। हनुमान जी ने वास्तविकता के पक्ष को समझा, इसलिए जब उन्होंने प्रभु राम को अपने भाई के हेतु रुदन करते या पत्नी सीता के लिए दुखी और टूटे हृदय की अवस्था में देखा तो भी उनकी भक्ति/आस्था कभी भी प्रभु रघुनाथ राम के व्यक्तिपरक कार्यों से न्यून नहीं हुई। उन्होंने प्रभु रघुनाथ राम को कभी भी अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष अथवा आनंदमय कोष के रूप में नहीं जाना।  उन्होंने राम को इन सब कोशों से परे जाना। उनके लिए तो राम, मानव देह के सभी भौतिक सत्य व पांच कोशों से परे की  अवस्था में स्थित थे ।

हनुमान जी को राम का इतना सूक्ष्म ज्ञान था कि उन्होंने राम को ऐसे ही जाना जैसे वह थे नाकि जैसे उनकी (हनुमान जी की) इन्द्रियों, बुद्धि, मन ने अनुमानित किया। उन्होंने  राम को ठीक-ठीक वैसे ही देखा और जाना जैसे वह थे और वह ज्ञान वस्तुनिष्ठ वास्तविकता पर आधारित था एवं उसमें व्यक्तिनिष्ठ सत्य की अल्पता थी। इसीलिए, सिद्ध धर्म की मान्यता है की हनुमान ने भक्ति योग सिद्ध किया है व वह ऐसे उपास्य देव हैं जिन्होंने सत्य में ईश्वर को जाना सो वह सिद्ध धर्म के द्वारा भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं।

कल्कि से सम्बन्ध 

सिद्ध धर्मानुसार, हनुमान महासिद्ध हैं जिन्होंने अनेक प्राच्य ज्ञानों को सिद्ध किया है। यह जन साधारण में अल्प ज्ञात धारणा है कि हनुमान एकादश रुद्रों में से एक हैं। रूद्र को तंत्र में ईश अर्थात ईश्वर भी उल्लिखित किया जाता है। हनुमान जी स्वयं में ईश्वर हैं। वह इतने गोपनीय व मायावी व्यक्तित्व हैं कि संसार में ईश्वर के सम्बन्ध में वह द्वैत भाव की स्थिति में रहने वाले  लगते हैं या स्पष्ट शब्दों में कहें ईश्वर से अलग जान पड़ते हैं। अल्प ज्ञात तथ्य है की वह स्वयं ईश्वर थे, उन्होंने प्रभु राम के रूप में ईश्वर की सेवा की, और स्वयं ईश्वर होते हुए भी कलियुग की तिमिरपूर्ण अवस्था में भगवान् कल्कि के रूप में ईश्वर के साक्षी होने की प्रतीक्षा करेंगे। हनुमानजी भक्ति की शुद्ध अद्वैत अवस्था में हैं, क्योंकि यहाँ ईश्वर ईश्वर को खोज रहे हैं, ईश्वर की सेवा कर रहे हैं, ईश्वर की प्रतीक्षा कर रहे हैं और अंततः परम ईश्वर से एकरूपता को प्राप्त हो रहे हैं। इनकी भक्ति में इस स्तर की गहराई और परिष्कृत अवस्था है कि मनुष्यों ने इनका चित्रण मात्र एक ईश्वर से बिछुड़े देवता के रूप में किया है पर सिद्ध धर्म के अनुसार यह कभी बिछुड़े हुए नहीं थे, इन्होंने केवल वियोग की दिव्य लीला का प्रदर्शन किया है

यह माना जाता है कि वह भगवान कल्कि के अवतार लेने कि प्रतीक्ष में रत हैं। सिद्ध धर्म की मान्यतानुसार इनको प्रभु रघुनाथ राम जी ने निर्देशित किया है कि वह महाचिरंजिवी हों, जिसके दो लक्ष्य थे। प्रथम घोर कलिकाल में माँ महावैष्णों देवी जी की रक्षा करना एवं द्वितीय ईश्वर के पूर्ण अवतार का साक्षी होना। सिद्ध धर्म का विश्वास है कि प्रभु कल्कि ईश्वर के पूर्ण अवतार होंगे। वह ईश्वर की सभी चौसठ कलाओं के मूर्तिमान रूप होंगे। ईश्वर के अंतिम पूर्ण अवतार के साक्षी बनने के पश्चात हनुमान जी स्थाई रूप से धरा का त्याग करके ईश्वर से एकरूप हो जायेंगे ।  

साथ ही साथ यह विश्वास है कि कलियुग में यह अन्याय से भक्तों की रक्षा करते हैं। यह उन सभी भक्तों के संरक्षक व तारक हैं जो वास्तव में आस्तिक हैं ।

सिद्धाचार में वज्र योग व् वज्र हनुमान दीक्षा ।

सिद्ध धर्मानुसार, सिद्धाचार एक तांत्रिक कुल है जो मुख्यतः कर्मकांड, योग, आयुर्वेद आदि का प्रयोग एक विशिष्ट रूप के पूजन हेतु करता हैं जिस से एक विशिष्ट संकल्प की प्राप्ति होती है। किसी विशेष ध्येय की प्राप्ति हेतु, सिद्ध धर्म मुख्यतः पूजन क्रम में तंत्र व योग के मिश्रण का प्रयोग करता है।  

वज्र हनुमंत दीक्षा आगामी साधना शिविर है जोकि सतारा में नवम्बर 2018 के अंतिम सप्ताह में आयोजित होगा। वज्र हनुमंत दीक्षा वह दीक्षा है जिसका सम्बन्ध वज्र हनुमंत से है। यहां सिद्धाचार पर आधारित हनुमंत के वज्र योगी रूप का पूजन वृहद सिद्धाचार अर्थात कर्मकांड व योग की सहायता से होगा। संक्षेप में, वज्र हनुमंत का योगी रूप कर्मकांडों के द्वारा पूजित व सिद्ध होता है।  

साथ ही सिद्धाचार पर आधारित वज्र हनुमंत दीक्षा पूजन क्रम के भाग के रूप में सदैव आवरण पूजा का प्रयोग करती है। आवरण पूजा, उस आवरण या पर्दे की पूजा है जिसके पीछे प्रत्येक देवता छिपा होता है। जैसे संतरे का बीज, फल के छिलके और गूदे में छिपा होता है, वैसे ही देवता माया की विभिन्न परतों के पीछे छिपा होता है। केवल जब पूरा पर्दा उठा लिया जाए तभी देवता को सही तरह से जाना जा सकता है। तंत्र में शिव सदैव अनेक आवरणों के पर्दे में छिपे होते हैं और जब शक्ति की सहायता से पर्दे हटाए जाते हैं तब प्रकृति(माया) के पीछे छिपे वास्तविक पुरुष(शिव) का ज्ञान होता है।    

सिद्ध धर्मानुसार, हनुमान जी कि शक्ति सुवर्चला हैं। इनके एक पुत्र होने की भी मान्यता है जिनका नाम मकरध्वज है। इसलिए, वज्र हनुमान पूजन में इनकी शक्ति सुवर्चला विशेष रूप से पूजित हैं, जिससे विभिन्न आवरणों के पीछे छिपे हनुमान जी को जाना जा सके व अनुभव किया जा सके।

वज्र हनुमान दीक्षा का उद्देश्य

सिद्ध धर्म का मत है कि हनुमान जी वज्र योग या वज्रयान के स्वामी/नाथ हैं। वज्र का अर्थ है वज्रमान अर्थात अत्यंत दृढ़। वज्रांगबली का अर्थ यह भी है कि इनकी सारी देह के भाग वज्र सम अत्यंत दृढ़ और वज्र के सामान शक्तिशाली हैं। अल्प ज्ञात तथ्य है कि हनुमान जी अन्दर व बाहर दोनों स्तरों पर वज्र हैं।    

मूलतः वज्र योग साधक की देह को अत्यंत ठोस वज्रमान बना देता है। सिद्ध धर्म के अनुसार, हमारे अंदर पांच भिन्न शरीर हैं यथा अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष व आनंदमय कोष। इसलिए वज्र योग केवल बाहरी देह यानी अन्नमय को ही वज्र सम नहीं करता अपितु प्राण देह, मन देह, विचार देह व अंततः आनंद देह को भी इसी प्रकार वज्र समान बनाता है।

वज्र हनुमंत दीक्षा की सिद्धि पूर्व वर्णित सभी शरीरों को हनुमान जी के ही जैसे बहुत ही बलशाली बना देती है। हनुमान जी के पास वज्र का शरीर था जैसे कि वज्र अन्नमय कोष, फिर वज्र प्राणमय शरीर जिससे वह अंतरिक प्राणों को दृढ कर सके, वज्र मनोमय कोष जहाँ उन्होंने अपनी भक्ति सिद्ध की व वह अपने प्रण पर बहुत दृढ रहे, वज्र विज्ञानमय कोष जिससे उन्होंने अष्ट सिद्धियों को सिद्ध किया, वह अपनी देह अपनी इच्छा एवं विचारों अनुसार भीम अथवा लघु करने में सक्षम रहे और अंततः वज्र आनंदमय कोष जहाँ वह सदैव गहरी भक्ति के आनंद में रहे।

साथ ही, नवीन साधक के हेतु, वज्र हनुमंत पूजन, शरीर के साथ मन व बुद्धि भी वज्र तुल्य करने से सम्बद्ध है। साधक तत्पश्चात शक्तिशाली देह धारी होता है व उसके सद्गुण जैसे व्रत, संकल्प आदि उस शिखर तक मज़बूत हो जाते हैं कि वह कठिन समय में भी अडिग रहे

वज्र हनुमंत पूजन साधक के देह, मन, व्रत, संकल्प आदि को वज्र तुल्य बना देता हैं जिससे वह जीवन में किसी भी विघ्न को जीत सकता हैं क्योंकि वज्र तत्व उसको उस प्रत्येक उद्देश्य में जिसकी प्राप्ति का वह इच्छुक है स्पष्टता व दृढ़ता प्रदान करता है। 

माँ वैष्णों से सम्बन्ध

सिद्ध धर्म में दंत कथा है  कि प्रभु राम की भेंट माँ वैष्णों से रामायण काल में हुई थी। दंतकथा अनुसार जब माँ वैष्णों ने प्रभु राम से भेंट की तब वह वनवास में थे, माँ वैष्णों ने प्रभु राम जी को पहचाना व विवाह प्रस्ताव रखा। क्योंकि प्रभु राम ईश्वर के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप के मूर्तिमान स्वरूप थे और कर्तव्यों का शुद्ध अनुपालन करने वाले थे इसलिए उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से वैष्णों माता का प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया क्योंकि वह प्रतिबद्ध पति थे एवं यह कार्य अनुपयुक्त पूर्वोदाहरण समाज में नियत कर देता। माँ वैष्णों में भी शक्ति तत्व था सो उनको अस्वीकृत करना भी उनके अंदर उपस्थित शक्ति का घोर अपमान होता। भगवान राम ने स्थिति की जटिलता को देखते हुए उन्हें वचन दिया कि वह वैष्णों माता को अस्वीकृत करने पर विवश थे लेकिन वह वैष्णों माता से विवाह केवल अपने अगले जन्म में ही कर पाएंगे जब उनका कल्कि अवतार होगा। माँ वैष्णों ने स्थिति की गंभीरता व जटिलता को समझते हुए इसको स्वीकृत किया और तब माँ ने निर्णय लिया कि वह कलियुग के तिमिर्वान चरण पर्यंत कल्कि अवतार से भेंट की प्रतीक्षा करेंगी व उनसे विवाह करेंगी। तब से वह कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में हैं कि कब वह अवतीर्ण हों व वह उनसे विवाह करें। इस विवाह की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि यह एक गन्धर्व विवाह होगा एवं विवाह संस्कार कुछ घंटों से अधिक नहीं चलेगा। माता तत्पश्चात धरा का त्याग करेंगी जबकि कल्कि अवतार इस धरा पर अपने विशेष कार्य का क्रियान्वयन करेंगे।

प्रभु राम ने हनुमान जी को उनका रक्षक बने रहने का स्पष्ट निर्देशन किया और माँ वैष्णों की रक्षा के निमित्त कलियुग पर्यंत उनको अमरत्व का वर प्रभु राम ने प्रदान किया। सिद्ध धर्म के विश्वास अनुसार हनुमान इस संसार में सर्वप्रथम माँ वैष्णों की रक्षा करने हेतु व द्वितीय भविष्य के साधकों को ईश्वरीय मार्ग में निर्देशित करने हेतु विद्यमान हैं। सिद्ध धर्म हनुमान जी को गुरुमंडल की मान्यता देता है। हनुमान जी वह गुरु हैं जो साधक का ईश्वर के मार्ग में सतत मार्गदर्शन करते हैं।

आधुनिक काल में पूजन

आधुनिक काल में हनुमान पूजन भक्ति आन्दोलन से अत्यंत प्रभावित है। इनका चित्रण बृहत्तर कौशलदर्शी अवस्थाओं जैसे वज्र योगी, तांत्रिक हनुमान आदि के स्थान पर अधिकतर एक ऐसे भक्त के रूप में होता है जोकि अपने भगवान से बिछुड़े हुए हैं। वह एक वानर देवता के रूप में चित्रित हैं जोकि अपने प्रभु से बिछड़ने का भाव लेकर गहरी भक्ति में लीन हैं। साथ ही तुलसीदास के रामचरित मानस के पश्चात, हनुमान चालीसा अस्तित्व में आया। हनुमान चालीसा हनुमान जी का स्तवन करने वाला भजन है जिसके चालीस दोहे हैं जो कि इनकी प्रशंसा एवं महिमा करता है। हनुमान चालीसे का दैनिक पाठ हनुमान जी के पूजन का आधुनिक समय में सर्वाधिक लोकप्रिय भाग है। किन्तु सिद्ध धर्म का मत आधुनिक काल के हनुमान पूजन पर भिन्न है।

सिद्ध धर्म कि मन्यता है कि हनुमान जी कलियुग के सबसे सक्रिय देवता हैं। वह गुरु मंडल के सक्रिय गुरु हैं। वह अभी भी साधक को ईश्वर के मार्ग में गुरु के रूप में मार्ग दर्शन करते हैं। वह सभी भय व काले जादू को दूर करने वाले माने जाते हैं। हनुमान जी वज्र योगी हैं सो वह वज्र हनुमान के रूप में पूजित हैं। सिद्ध धर्म के द्वारा इनके विभिन्न रूपों के विभिन्न भाग प्रारूपित हैं। इनका पूजन योग व तंत्र द्वारा किया जा सकता है।

मुख्यतः इनका पूजन, सिद्ध धर्म में, शुद्ध तंत्र पर आधारित हनुमंत रूप का है परन्तु वज्र हनुमंत दीक्षा मिश्रित पूजन का भाग है, जहाँ इनका पूजन तंत्र और योग दोनों से होता है। दोनों भाग वज्र नाड़ी पर आधारित हैं एवं वज्र नाड़ी तंत्र व योग दोनों से सिद्ध की जा सकती है। सिद्ध धर्म दशभुज हनुमान अर्थात दस हाथ वाले हनुमान जी के रूप के पूजन क्रम का सूत्र निर्देशित करता है।

मूलतः हनुमान जी का आधुनिक काल का पूजन सिद्ध धर्म के अनुसार न केवल भक्ति की सिद्धि का है अपितु विभिन्न तंत्र व योग की सिद्धि भी है। हनुमान साधना द्वारा, वज्रयान एवं वज्र योग सिद्ध हो सकता है।

ईशपुत्र व हनुमान जी

सिद्ध धर्म के प्रमुख महासिद्ध ईशपुत्र ने हनुमान जी के पूजन को उच्चतम आदर दिया है। वस्तुतः उनके द्वारा हनुमंत दीक्षा के एक शिविर का संचालन पहले ही कराया जा चुका है जबकि दूसरा वज्र हनुमंत दीक्षा का शिविर नवम्बर 2018 के अंतिम सप्ताह में होने वाला है। ईशपुत्र हनुमंत दीक्षा को अत्यधिक महत्व देते हैं क्योंकि हनुमान जी उस प्रत्येक साधक के उत्तम प्रेरणा स्त्रोत हैं जो अध्यात्म के मार्ग में कुछ बनना चाहता है। हनुमान जी के आशीष से, साधक भगवान शिव के सभी तंत्रों के स्वरूपों के साथ ही विभिन्न योगों जैसे वज्र योग आदि में भी में पारंगत हो सकते हैं। हनुमान साधकों को परमेश्वर के अस्तित्व के प्रति विश्वासी और आस्तिक बनने की प्रेरणा देते हैं। 

सिद्ध धर्म के अनुसार, हनुमान जी ने ईशपुत्र का सदैव उनकी साधना के समय रक्षण किया। जब वे हिमालय में साधना का अभ्यास करने हेतु जाते थे, वहां हनुमान जी ही थे जो उनका रक्षण सभी वन्य जीवों व विभिन्न विघ्नों से करते थे  कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर महासिद्ध ईशपुत्र, अपने साधनाकाल में, हनुमान जी की सतत देखरेख में बने रहे। सिद्ध धर्म में हनुमान जी का महत्व बहुत ऊँचा है और यहाँ की गुरु शिष्य परम्परा में हनुमान पूजन का ससूत्रनिर्देशन शिष्यों को किया जाता है। 

हनुमान जी का शाप

सिद्ध धर्मानुसार,हनुमान जी शाप से प्रतिरक्षित नहीं हैं। बालावस्था में वह ऋषि मुनिगण की जीवनचर्या में विघ्न डालने के कारण शापित हुए। वह बालक के रूप में ऋषि-मुनि गणों को उनकी तपस्या से, विघ्न डालकर भटका देते थे। एक ऋषि ने उन्हें शाप दिया कि उन्हें उनका समस्त साहस व बल विस्मृत हो जाएगा और वह साधारण व्यक्ति बन जायेंगे। तत्पश्चात, वह अपना बल भूल गए और बाद में जाम्बवंत ने उनको उनके बल व साहस का फिर से स्मरण कराया। उन्हें जब उनकी शक्ति फिर से स्मरण कराई गयी तब उन्होंने अपने बल को फिर से अनुभव किया व पूर्व की भांति ही बलशाली बन गए

इस कथा का प्रयोग सिद्ध धर्म, अपने साधकों को यह शिक्षा प्रदान करने हेतु करता हैं कि हम सभी स्वभावतः हनुमान जी हैं। हम सभी बलशाली जीव हैं पर अपनी वास्तविक शक्ति विस्मृत कर चुके हैं। जिस दिन कोई हमें हमारी शक्तियों के बारे में फिर से स्मरण करायगा जैसे जाम्बवंत ने हनुमान जी को कराया था, हम फिर से हनुमान जी जैसे बन जाएंगे। दीक्षा के द्वारा, प्रत्येक गुरु अपने शिष्य को फिर से स्मरण दिलाता है कि शिष्य हनुमान जी हैं और जब साधक दीक्षा सिद्ध कर लेता है, वह हनुमान जी के ही समान अपनी पूर्ण क्षमता को फिर से अनुभव कर लेता है

प्रतिमा विज्ञान

सिद्ध धर्म के अनुसार हनुमान जी के अनेक चित्रण हैं। सबसे प्रसिद्ध रूप जो समाज में प्रचलित है व वह सिद्ध धर्म में भी है, वह है हनुमान जी का वीरासन में होना।  हनुमान जी ऐसे देवता के रूप में चित्रित हैं जो एक हाथ में कमल पुष्प लिए हैं व अन्य हाथ में गदा। यह विशेष असन की भंगिमा को वीर हनुमंत आसन के नाम से जाना जाता है।

एक हाथ में वह कमल पकड़े हैं जोकि समृद्धि, सम्पदा व बाहुल्य का प्रतीक है। दुसरे हाथ में वह गदा उठाये हैं। यह गदा शक्ति का प्रतीक है।

हनुमान जी योगी स्वरुप में साधारण सरल योगी के रूप में चित्रित हैं जोकि सिद्धासन अथवा पद्मासन में ज्ञान मुद्रा संग शुशोभित हैं। दशभुजा रूप में इनका चित्रण दस हाथों के साथ है, यह इनका क्रूर रूप है। यह रूप कपालों की माला पहने व शस्त्र धारी चित्रित है। दक्षिण बाहुओं में वह त्रिशूल , धनुष, ढाल व मुंड खप्पर लिए हैं व अन्य बाहुओं में गदा, डमरू, खड्ग व मुंड लिए हुए हैं ।

हनुमान जी का आह्वाहन उनके ध्वज में किया जाता है व जिन स्थानों की रक्षा करनी होती है, वहां ध्वज स्थापित किया जाता है। उनका ध्वज नेपाल के ध्वज के समान है, जिसमें दो त्रिकोण संयुक्त अवस्था में हैं, व इनके मध्य हनुमान जी द्रोणगिरि अपने साथ ले जाते हुए और लंका की ओर उड़ते हुए चित्रित हैं।

हनुमान जी के अन्य रूप भी हैं जहाँ वह पद्मासन में बैठे अपनी छाती चीरते हुए चित्रित हैं। मूल रामायण में हनुमान जी ने छाती चीर कर संसार में यह सिद्ध किया कि प्रभु राम व सीता उनके हृदय में निवास करते हैं।

Sidebar